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Wednesday, July 1, 2009

बैचेनी

संवेदना की स्याही से आँखो के कागज पर लिखे हुए, भीने से आँसू जैसे थोड़े से गीले शब्द चमक रहे है, होंठो की हद तोड़ कर आवाज़ का पानी तो बह गया सारा, अब तो ये हर्दय का सरोवर पीड़ा से छलकता है, जानता हूँ की तुमको नही आता इन चमकते शब्दो को पढ़ना, ओर ये दुर्भाग्य है मेरे शब्दो का की, तुम मुझसे पुछ्ते हो की --- क्यूँ में मौन हू. किसलिए में मौन हूँ....(अनाम)

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