में तुमको विश्वास दू तुम मुझको विश्वास दो
शंकाओ के सागर हम लाँघ जाएँगे,
मरुधरा को मिलकर स्वर्ग बनाएँगे
प्रेम बिना यह जीवन तो अनजाना हें,
सब अपने हें कौन यहाँ बेगाना हें
हर पल अपना अर्थवान हो जाएगा,
बस थोड़ा सा मन में प्यार जगाना हें
इस जीवन को साज दो मौन नही आवाज़ दो,
पत्थरो में मीठी प्यास जगाएँगे
मरुधरा को मिल कर स्वर्ग बनाएँगे,
अलगाओ से आग सुलगने लगती हें
उपवन की हर शाख झुलसने लगती हें,
हर आँगन में सिर्फ़ सिसकिया उठती हें
संबंधो की सांस उखड़ने लगती हें,
द्वेष भाव को त्याग दो
बस सबको अनुराग दो,
सन्नाटो में हम सरगम बन जाएँगे
मरुधरा को मिल कर स्वर्ग बनाएँगे,
ढूँढ सको तो इस माटी में सोना हें
हिम्मत का हथियार नही बस खोना हें,
मुस्का दो तो हर मौसम मस्ताना हें,
बीत गया जो समय उसे क्या रोना हें
लो हाथो में हाथ लो
एक दूजे का साथ दो,
इस धरती का सोया प्यार जगाएँगे मरुधरा को मिल कर स्वर्ग बनाएँगे.
सन्नाटो में सरगम (1996)
Wednesday, August 5, 2009
सन्नाटो में सरगम
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5 comments:
हम मिलकर तो मरुधर को स्वर्ग बना ही लेंगे
शुभकामनाएं
sundar khayalat...!
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good poems from yr pen,welcome to this blog world.
Hope we all will enjoy yr long stay.
yours,
Dr.bhoopendra
acha likha hai...
ढूँढ सको तो इस माटी में सोना हें
हिम्मत का हथियार नही बस खोना हें,
मुस्का दो तो हर मौसम मस्ताना हें,
बीत गया जो समय उसे क्या रोना हें
लो हाथो में हाथ लो
एक दूजे का साथ दो,
इस धरती का सोया प्यार जगाएँगे मरुधरा को मिल कर स्वर्ग बनाएँगे.
बहुत अच्छी रचना है
तेज धूप का सफ़र
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