* * * आपका हार्दिक स्वागत मेरे ब्लॉग पर ईश्वर * * *

Monday, September 7, 2009



मेरे दिल की विरानीयों में
आज भी फूल खिलते हें कभी कभी.
मेरे अरमानो की ठंडी राख में
आज भी शोले भड़कते हें कभी कभी.
जब भी इस कायनात में कही
आती हें खुश्बू उसके सांसो की.
फ़िज़ा में उस खुश्बू का अहसास
करता हू में कभी कभी.

2 comments:

आनन्द वर्धन ओझा said...

ताउम्र भटकते फिरे जिस खुशबू के लिए हम !
मिली वो ख़ाक में, जहाँ जाते नहीं थे हम !!
sapreet-- aa.

ओम आर्य said...

वाह क्या बात है!