मेरे दिल की विरानीयों में
आज भी फूल खिलते हें कभी कभी.
मेरे अरमानो की ठंडी राख में
आज भी शोले भड़कते हें कभी कभी.
जब भी इस कायनात में कही
आती हें खुश्बू उसके सांसो की.
फ़िज़ा में उस खुश्बू का अहसास
करता हू में कभी कभी.
Monday, September 7, 2009
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
2 comments:
ताउम्र भटकते फिरे जिस खुशबू के लिए हम !
मिली वो ख़ाक में, जहाँ जाते नहीं थे हम !!
sapreet-- aa.
वाह क्या बात है!
Post a Comment