मोहब्बत अल्फ़ाज़ है वो जो कायनात की सरजमीन
पर तबसे है,
जब जहाँ के मालिक ने इन फिजाओ को बनाया था.
मुड़ के देखे अगर माजी में तो कुछ नाम आते है सामने
जिन्होने जज़्बा-ए-खुदा को अपने दिल में पनाह दी थी.
सिर्फ़ उन्ही के नाम है,
इस जहाँ में जो ईश्क की गहराइओ में डूब कर फ़ना हो गये.
ओर गर नज़र उठा कर देखे मुस्तकबिल की तरफ तो समझ में
आती है ये बात की आज मायने बदल गये है मोहब्बत के,
आज कोई नही फ़ना होता इस अहसास में.
क्योंकि अब ये अल्फ़ाज़ सिर्फ़ जिस्मो तक शक्लो-सूरत तक सिमट कर रह गया है.
अब कोई नही कहता की ये तो
"सिर्फ़ अहसास है रूह से महसूस करो,
हाथ से छु के रिश्तो का इल्ज़ाम ना दो."
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(पर आज की दुनिया में भी कुछ लोग है
जो मुहब्बत के मायने जानते है,
जो इस खूबसूरत अहसास को रूह से महसूस करते है.)
Saturday, February 14, 2009
मोहब्बत
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1 comments:
muhabat sach badi ajab hai
par koi koi hi janta hai ye kya hai
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